बांझपन किसी भी रिश्ते में दूरियां पैदा कर देता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ दिखाने वाली कई महिलाएं अण्डे खराब होने के कारण संतान सुख से वंचित रह जाती है, काफी प्रयासों के बाद भी जब गर्भधारण नहीं होता है तो महिला बिना कारण जाने खुद को कोसने लगती है। महिलाओं के गर्भधारण नहीं कर पाने या गर्भधारण के बाद उसे जन्म तक नहीं ले जा पाने के प्रमुख कारणों में से है अण्डों की संख्या व गुणवत्ता में कमी।
गर्भधारण में अण्डों का महत्व – नीलकंठ आई वी एफ की आई वी एफ स्पेशलिस्ट डॉ. बिन्दु गर्ग बताती हैं कि सामान्य गर्भधारण की बात की जाए तो महिला के मासिक धर्म से उसके अंडाशय में अण्डों को निर्माण आरम्भ होता है, इनमें से एक अंडा परिपक्व होकर फैलोपियन ट्यूब में आता है इस दौरान संबंध बनाने से शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है और भ्रूण बन जाता है चार- पांच दिन यहीं विकसित होने के बाद भ्रूण गर्भाशय की लाईनिंग में जाकर चिपक जाता है और लगभग नौ माह तक विकसित होकर जन्म लेता है। अगर महिला के शरीर में बनने वाले अंडे में किसी तरह का विकार है तो गर्भधारण नहीं हो पाएगा अगर हो भी गया तो कुछ समय में गर्भपात का डर रहता है।
अंडों की संख्या – नीलकंठ आई वी एफ की आई वी एफ स्पेशलिस्ट डॉ. बिन्दु गर्ग का कहना है कि महिला के अण्डाशय में जन्म से ही अण्डों की संख्या निर्धारित होती है, माहवारी शुरू होने के साथ ही हर माह अण्डे खर्च होते रहते है, एक उम्र के बाद अण्डे समाप्त हो जाते हैं और महिला की माहवारी बंद हो जाती है। सामान्यतया 30 वर्ष तक की आयु में अण्डों की संख्या और गुणवत्ता उत्तम होती है, कई शोध और अध्ययन में सामने आया है कि 35 वर्ष की उम्र के पश्चात् महिला के अण्डो की संख्या और उसकी गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आती है इस कारण प्रजनन क्षमता में भी कमी या गिरावट आती है।
डोनर एग की जरूरत किन महिलाओं को – ऐसी महिलाएं जिनकी उम्र ज्यादा होने के कारण अण्डों की संख्या कम हो चुकी है या ऐसी महिलाओं जिनकी माहवारी बंद हो चुकी है यानि उनके अण्डे समाप्त हो चुके है ऐसी महिलाएं जिन्हें हॉर्मोन के इंजेक्शन के द्वारा भी अण्डा नहीं बनाया जा सकता है, वे महिलाएं जिनकी उम्र कम है लेकिन उनके अण्डों समय से पहले समाप्त हो चुके है जिसे प्रीमेच्योर ऑवेरियन फेलियर कहते हैं या अण्डों की मात्रा तो सही है लेकिन उनकी गुणवत्ता खराब हो चुकी हो। जैसा कि पीसीओएस या एण्ड्रोमेसियोसिस की समस्या में होता है।
वे महिलाएं जिन्हें गर्भधारण तो होता है लेकिन बाद में गर्भपात हो जाता है वे भी डोनर एग से संतान प्राप्ति कर सकती हैं।
आंकडों पर नजर डालें तो – उम्र के साथ फर्टिलिटी के संबंध की बात करें तो 22 से 30 वर्ष की उम्र में प्रति माह गर्भधारण की संभावना करीब 22-25 प्रतिशत रहती है। वहीं 35 वर्ष बाद यह घटकर 15 प्रतिशत तक रह जाती है और 40 वर्ष की उम्र तक यह घटकर 10 प्रतिशत से भी कम हो जाती है 44 वर्ष की उम्र के बाद यह 5 प्रतिशत से भी कम रह जाता है।
डोनर एग अपनाने की प्रक्रिया– डोनर एग की प्रक्रिया सरकार के एआरटी बिल के अधीन आती है, यह एक कानूनी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में अण्डा डोनर करने वाली और अण्डा लेने वाली दोनों महिलाओं की लिखित सहमति ली जाती है। साथ ही दोनों की पहचान आपस में गुप्त रखी जाती है।